- करण समस्तीपुरी
गहन तिमिर है, पंख पसारे !
गहन नीरवता, हृदय हमारे !!
आस क्षीण है, करूण वेदना !
तरुण हृदय, दृग में जलधारे !!
गहन तिमिर है... !!
धरती पर हैं, गीत अमा के !
तारों की बारात, गगन में !
हृदय विवश, व्याकुल है अंतस,
कठिन द्वंद है, अंतर्मन में !
आँखें थकी, आस कुम्हलाये,
प्रभा किरण की, पंथ निहारे !
गहन तिमिर है ... !!
अकथ व्यथा से, कम्पित अलकें,
पीड़ा से हैं, भींगी पलकें !
पर विश्वास, नयन में झलकें !
आयेंगे ! निश्चय आयेंगे !!
चिर प्रतीक्षित, दिन उजियारे !!
गहन तिमिर है ... !!
5 comments:
karan sahab,
u rocks man
Karan ji... ati uttam !!
Aahank jaadui lekhni ke jaadu aaga seho dekhai ke abhilaashi chhi !!
Dhanyavaad !!
नमस्कार,
इस आशावादी रचना के लिए बधाई।
अकथ व्यथा से, कम्पित अलकें,
पीड़ा से हैं, भींगी पलकें !
पर विश्वास, नयन में झलकें !
आयेंगे ! निश्चय आयेंगे !!
चिर प्रतीक्षित, दिन उजियारे !!
गहन तिमिर है ... !!विकट परिस्थितियों का विवरण उपयुक्त विशेषणों से करते हुए काव्यांत में आशा एवम् विश्वास की चर्चा सुखद एवम् प्रेरणादाई प्रतीत होती है।
मैं खास तौर पर कुन्दन जी को आभार प्रकट करना चाहूँगा करण जी की कविताओं को
हम तक लाने के लिए,लेकिन सँग ही स्वयं करण जी की भी उपस्थिती की प्रतीक्षा रहेगी।
शुभ कामनाएँ!
धन्यवाद!
अकथ व्यथा से, कम्पित अलकें,
पीड़ा से हैं, भींगी पलकें !
पर विश्वास, नयन में झलकें !
आयेंगे ! निश्चय आयेंगे !!
चिर प्रतीक्षित, दिन उजियारे !!
गहन तिमिर है ... !!"""
kesav ji....bahut hi uttam!!!
"दिले तस्वीर है यार,
गर्दन झुका ली और मुलाक़ात कर ली !!"
श्रद्धेय पाठक एवं सहयोगी वृन्द,
आपके प्यार के प्रबल प्रवाह ने आज मेरे कलम का बाँध तोड़ ही दिया ! मैं स्वयं को आप से कभी विलग नहीं महसूस करता ! जन्मेजय जी की उत्कृष्ट संसुति के लिए उन्हें बहुत धन्यवाद ! मेरे पास अब कोई बहना भी नहीं है ! बस यूँ समझ लीजिये कि "कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी! यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता !!"
आप लोग दिवा रात्री जब भी चाहें 09740011464 पर मुझ से निःसंकोच संपर्क कर सकते हैं !
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