दोस्तों, हाजिर हूँ मैं एक बार फिर आप सब के सामने ले कर एक नया तराना ! उम्मीद करता हूँ कि "कर्ण-कायस्थ चिट्ठी" की ये पेशकश आप सब को बेहद पसन्द आएगी। और हाँ, हमें अपनी टिप्पणी से अवगत कराना ना भूलें,क्योंकि आपकी टिप्पणियाँ ही हमारे लिए प्रोत्साहन एवम प्रेरणा का श्रोत हैं। तो लीजिए पेश करता हूँ अपनी ये रचना...
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए,
प्यार भरा खत है, ऐसे चीथडे ना कीजिए,
लब्ज़ कोई स्याही नहीं, खून से लिखे हैं मेरे,
खत नहीं,ये दिल मेरा है,टुकडे ना कीजिए,
यूँ सितम ना कीजिए।
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।
नूर है जो हूर-सा तो यूँ गुमाँ ना कीजिए,
इस कदर आशिकों की बेजती ना कीजिए,
माँगते हैं दिल दिल दे करके,खैरात नहीं माँगते,
एक हाथ दीजिए,एक हाथ लीजिए;
यूँ सितम ना कीजिए।
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।
हम बने हैं आपके ही,आप हैं हमारे लिए,
ये खुदा का फैसला,यूँ नाकबूली ना कीजिए,
ना मिलेगा हम-सा कोई प्यार करने वाला तुम्हें,
दिल क्या है,जाँ भी दे दें,आजमा तो लीजिए;
यूँ सितम ना कीजिए।
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।
-जन्मेजय