ब्लॉग प्रबन्ध मण्डली :-

प्रधान सम्पादक- करण समस्तीपुरी, सम्पादक- जन्मेजय, सँयोजक- कुन्दन कुमार मल्लिक,

Tuesday, 9 June 2009

मन का पंछी उड़ना चाहे….


मन का पंछी उड़ना चाहे,
लेकिन उड़ ना पाये !
हाय !
किसको दर्द सुनाये !!
कतरे गए पंख कोमल और
आँखे हैं धुंधलाई !
धुंधली आंखो में सतरंगी,
सपने बहुत छुपाये !!
हाय !
किसको दर्द सुनाये !!
कहाँ बसेरा, कहाँ ठिकाना,
किस पथ से किस नभ को जाना !!
काल जाल लेकर बैठा है,
भय से जी घबराए !
हाय !
किसको दर्द सुनाये !!

- करण समस्तीपुरी

Thursday, 28 May 2009

मिथिला के नौनिहाल : youth of mithila

मिथिलावासी! हम ई कविता लिखलौं अपन भावना संप्रेषित करैला ,आई मिथिला के आवश्यकता छै कि एकर सपूत सब आगा आइब क' एकरा लै अपन योगदान दइ,,,अपन कर्तव्य'क निर्वाह करै। हम अइलै तैयार छी,,,,,,,,कि आँहाँ तैयार छी??????


मिथिला के नौनिहाल


मिथिला के नौनिहाल छी हम
काइल के लेल तैयार छी हम!

जे आइब रहल अछि
प्रखर-पुँज
ओइ 
नव युग के
आधार छी हम।
काइल के लेल तैयार छी हम!

हम छी भविष्य अइ मिथिला के,
छी नौनिहाल अइ धरती के;
जे ताइक रहल अछि
घुइर-घुइर,
ओइ 
स्वर्णयुग के
आसार छी हम।
काइल के लेल तैयार छी हम!

विपदा अनेक अइ धरती पर
अछि आइ मचेने त्राहि-त्राहि;
फइला जे रहल अछि
अनहार सघन,
ओइ 
दानव के
संहार छी हम।
काइल के लेल तैयार छी हम!

अपावन भेल इ जानकी-ग्राम,
घट-घट पर रावण बइसल अछि;
जे नइ हुअक चाही
अइ धरती पर
ओइ 
अनीति के
प्रतिकार छी हम।
काइल के लेल तैयार छी हम!

ध्वस्त करु अइ जर्जर के,
किछु नूतन आऊ स्रिजन करी;
जे अछि वरेण्य
अइ मिथिला लै,
ओइ 
क्रान्ति के
विस्तार छी हम।
काइल के लेल तैयार छी हम!



-जन्मेजय

Saturday, 16 May 2009

इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।

दोस्तों, हाजिर हूँ मैं एक बार फिर आप सब के सामने ले कर एक नया तराना ! उम्मीद करता हूँ कि "कर्ण-कायस्थ चिट्ठी" की ये पेशकश आप सब को बेहद पसन्द आएगी। और हाँ, हमें अपनी टिप्पणी से अवगत कराना ना भूलें,क्योंकि आपकी टिप्पणियाँ ही हमारे लिए प्रोत्साहन एवम प्रेरणा का श्रोत हैं। तो लीजिए पेश करता हूँ अपनी ये रचना...


इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।


इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए,
प्यार भरा खत है, ऐसे चीथडे ना कीजिए,
लब्ज़ कोई स्याही नहीं, खून से लिखे हैं मेरे,
खत नहीं,ये दिल मेरा है,टुकडे ना कीजिए,
यूँ सितम ना कीजिए।
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।


नूर है जो हूर-सा तो यूँ गुमाँ ना कीजिए,
इस कदर आशिकों की बेजती ना कीजिए,
माँगते हैं दिल दिल दे करके,खैरात नहीं माँगते,
एक हाथ दीजिए,एक हाथ लीजिए;
यूँ सितम ना कीजिए।
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।


हम बने हैं आपके ही,आप हैं हमारे लिए,
ये खुदा का फैसला,यूँ नाकबूली ना कीजिए,
ना मिलेगा हम-सा कोई प्यार करने वाला तुम्हें,
दिल क्या है,जाँ भी दे दें,आजमा तो लीजिए;
यूँ सितम ना कीजिए।
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।
इस कदर आशिकी की इंतेहाँ ना लीजिए।।

-जन्मेजय
 

कर्ण कायस्थ चिठ्ठी