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प्रधान सम्पादक- करण समस्तीपुरी, सम्पादक- जन्मेजय, सँयोजक- कुन्दन कुमार मल्लिक,

Sunday 19 April 2009

परिवर्तन की बेला- जन्मेजय



(मित्रगण,
प्रस्तुत कर रहा हूँ इस ब्लौग पर अपनी पहली रचना। आप सबों के टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी।)

पौ फटने पर
चिडियों की चहचहाहट आती है,
खिडकी बन्द रहती है,
कमरे में फिर भी आ जाती है;
खिडकी के पल्लों के बीच थोडी सुराख है,
अन्दर कमरे में थोडी धूप भी आ जाती है;
खिडकी-दरवाजे बन्द रहते हैं,
फिर भी सुबह होने पर
कमरे में रौशनी हो जाती है;
सुबह की कुछ बात ही निराली होती है,
बिन घडी देखे ही
पता चल जाता है
कि सुबह हो गई,
आँख खुद-ब-खुद खुल जाती हैः

जब परिवर्तन की बेला आएगी,
तो रोके ना रुकेगी;
खिडकी-दरवाजे बन्द भी हों
तो भी कमरे रौशन हो जाएँगे;
सुबह होने दो,
बिन घडी देखे ही
सब जाग जाएँगे !

पृथ्वी के आधे चक्कर में
दिन रहता है,
बाँकी आधे चक्कर में रात रहती है,
फिर अगले चक्कर में
यही क्रम दुहराता हैः
आओ मिल कर धरती घुमाएँ !
रात वाला आधा चक्कर जल्दी पूरा हो जाएगा,
सवेरा 
जल्दी आ जाएगा।

आओ कोशिश करें !

-जन्मेजय

13 comments:

Anonymous said...

"आओ मिल कर धरती घुमाएँ !
रात वाला आधा चक्कर जल्दी पूरा हो जाएगा,
सवेरा
जल्दी आ जाएगा।""


liked it....!!!![:)]hope to see more from u soon..!!

p_i_y_o said...

nice one buddy.. :)

haan baaki posts ka intezaar hain!! :)

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

जब परिवर्तन की बेला आएगी,
तो रोके ना रुकेगी;
खिडकी-दरवाजे बन्द भी हों
तो भी कमरे रौशन हो जाएँगे;
आपकी लेखनी से यह मंच भी यूँ ही रौशन होती रहे यही शुभकामना है।

सप्रेम-
कुन्दन कुमार मल्लिक

Aashish said...

"Pariwartan hi Prakriti ka niyam hai"- is rahasya ko aapne apni lekhni ke madhyam se bade hi sadharan shabdo me abhivyakta kiya hai.......aur itihas sakhsi hai ki kalam/lekhni ke madhyam se bade-bade pariwartan is duniya me aaye hai!!!!!!
Bahut-bahut badhai aur subhakamnayen!!!!!

Sanjay Grover said...

हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ............
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
-(बकौल मूल शायर)

runnu said...

नमस्कार !!!
आपने क्या खूब लिखा है "जब परिवर्तन की बेला आएगी,
तो रोके ना रुकेगी;............. "
हम उम्मीद करते है की आप की अगली रचना से जल्द ही रूबरू होंगे !
धन्यवाद !!

राजेश

Anjana..whu else? said...

Parivartan ki bela kab exactly aayegi ye to pata nahi, but aapki ye kavita sun ke kisi ka bhi drishtikon jeevan ke prati zarur parivartit ho jayega...
Aapki rachna + bhav bahut ki khubsurat hain.....
Veryy beautiful, Very thoughtful & immensely motivating!! :)

ANANT said...

janmejay bhai... Aahan ke lekhni mein aseem chetna aa sambhaavna swatah ujagar hoit aichh... Aasha aichh je ei dhaar aviral bahait rahat !!
Hamar Subh-kaamna sadaiv aahan ke sang aichh !!
Jai Ho !!

Saprem-
Anant

Anonymous said...

MINDBLOWING,MINDBOGGLING,SIMPLY SUPERB CREATION BY THE TRUE GENIOUS

sanjana das . . . said...

janmejay ji gud one.....!!!

my personal fav line in this are....
"खिडकी के पल्लों के बीच थोडी सुराख है,
अन्दर कमरे में थोडी धूप भी आ जाती है;
खिडकी-दरवाजे बन्द रहते हैं,
फिर भी सुबह होने पर
कमरे में रौशनी हो जाती है;"

and i truly amazed by your thoughts!!

thnxs for the luvly creation..and for sharing with us!!

hope to have more from you very soon....!!!

with sweet wishes...:)

sanjana das....

Anand Das said...

जन्मेजय के सोच के हम बहुत कायल छी,
हम सब त बचपन साथ साथ बितेने छी,

परन्तु ई चिंटू सं कहिया चिंतन बैन गेलैथ,
बचपन के सोच के एक नव दिशा देलैथ,
अई बात के खबरों नई होब देलैथ,,

हिनकर ई रचना में सबसँ बढ़िया हमरा लागल,

"खिडकी-दरवाजे बन्द रहते हैं,

फिर भी सुबह होने पर

कमरे में रौशनी हो जाती है;"

हिनकर सोच त देखियौ,
अपन मन सं सोचियौ,

सच में जखन खिरकी दरवाजा सब बंद छै,
त भोरे भोर रौशनी कत सं आबि जाय छै.

आनन्द दास

करण समस्तीपुरी said...

खिडकी के पल्लों के बीच थोडी सुराख है,

अन्दर कमरे में थोडी धूप भी आ जाती है;

खिडकी-दरवाजे बन्द रहते हैं,

फिर भी सुबह होने पर

कमरे में रौशनी हो जाती है;

सर्वजन सुगम सम्प्रेषनीयता से युक्त अद्भुत शास्त्रीय लेखन ! अनूठे विम्ब भावों के सफल वाहक बन पड़े हैं !! आपकी प्रखर लेखनी दिनानुदिन नए कीर्तिमान स्थापित करे !
शुभ-कामनाएं !!

Unknown said...

खिडकी बन्द रहती है,
कमरे में फिर भी आ जाती है;
खिडकी के पल्लों के बीच थोडी सुराख है,
अन्दर कमरे में थोडी धूप भी आ जाती है;
खिडकी-दरवाजे बन्द रहते हैं,
फिर भी सुबह होने पर
कमरे में रौशनी हो जाती है;
सुबह की कुछ बात ही निराली होती है,

 

कर्ण कायस्थ चिठ्ठी