क्यूँ बार-बार रुक जता हूँ !
है कोई शक्ति अदृश्य कि मैं,
उसके आगे झुक जाता हूँ !!
मैं जीवन पथ पर .. !!१!!
क्या इस पथ का उद्देश्य भला ?
मैं क्यूँ इस पथ पर आन चला ??
आगे का पथ है ज्ञात नही !
कोई पथ-प्रदर्शक साथ नही !!
मैं चरण चिन्ह किनके चूमूं,
हर मोर पे आ चुक जाता हूँ !!
मैं जीवन पथ पर ... !!२!!
न सखा कोई न है सहचर !
है लक्ष्य दूर, अज्ञात डगर !!
एक ओर भीड़ एक निर्जन है !
किस पथ से जाऊं, उलझन है !!
हर ओर कदम दो-एक चल कर,
किस भय से मैं घबराता हूँ !
मैं जीवन पथ पर ... !!३!!
पर लेता हूँ मैं आज शपथ !
चाहे जितना लंबा हो पथ !!
कंटक-संकट से भीत नही !
मैं थक बैठूं, यह रीत नही !!
ये आश-निराश का धूप -छाँव,
विश्वास से मैं ठुकराता हूँ !
मैं जीवन पथ पर चल-चल कर,
क्यूँ बार-बार रुक जाता हूँ !!४!!
2 comments:
वाह!
समस्तीपुरी जी की तरफ से एक और प्रेरक रचना! आपके पिछले पोस्ट "गहन तिमिर है" की भाँति ही इस रचना के भी प्ररम्भिक अनुच्छेद कवि की समस्याओं एवम विकट परिस्थितियों का वर्णन करते हैं ,एवम अन्तिम अनुच्छेद में हार ना मानने का निश्चय एवम सुखद भविष्य की आशा का भाव... बहुत खूब!
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई!
धन्यवाद!
hmmm i m really sorry ki i was away from the blog and reading such nice lines so late....!!but better late thn never..[:p]
well
":है कोई शक्ति अदृश्य कि मैं,
उसके आगे झुक जाता हूँ !!".....
aur ek jo bahutttttttt hi pasand aayee...
"ये आश-निराश का धूप -छाँव,
विश्वास से मैं ठुकराता हूँ !"
thnxs for sharing with us..!!!
Congrats...really well said..!!!
मैं थक बैठूं, यह रीत नही !!
rgds
sanjana
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