परम प्रिय परमात्मा से विलग जीव, जग-जंजाल में उलझा तो रहता है, किन्तु प्रियतम से मिलन के लिए आत्मा की आकुलता कभी कम नहीं होती! इसी भाव को संजोये प्रस्तुत है, एक सूफी गीत! आपकी प्रतिक्रया ही हमारी रचनात्मक ऊर्जा का इंधन है, इतना ध्यान अवश्य रखेंगे! - करण समस्तीपुरी
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कब आयेगी बेला मिलन की,
बीती जाए उमरिया !
साज सजा के बैठूं महल बिच,
पर नही चैन बावरिया !
पग बरबस खींचे पनघट पर,
पथ पर लागी नजरिया !
बीती जाए उमरिया !!१!!
आए-गए बहार-बसंती,
पर नही लीन्ही खबरिया !
अब तो आन मिलो मेरे प्रियतम,
घिर आयी है बदरिया !!
बीती जाए उमरिया !!२!!
अँखियाँ बनी है सावन भादों,
पर उर में है ज्वाला !
विरह की आग लगी तन-मन में,
आओ बुझाओ सांवरिया !
बीती जाए उमरिया !!३!!
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2 comments:
नमस्कार!
खडी बिली हिन्दी के शब्दों के साथ आँचलिक शब्दों का प्रयोग सुन्दर बन पडा है, ब्रज / अवधी का पुट-सा है। हालांकि कविता में शब्द-समायोजन तनिक सुर में हुआ है, अतएव कविता पढने की बजाय कवि द्वारा गाए जाने पर अधिक जचेगा।
इस सुरीली रचना के लिए बधाई।
धन्यवाद!
"एक सूफी गीत!" [:0]
khair...
Song is really gud....and
"अँखियाँ बनी है सावन भादों,
पर उर में है ज्वाला !
विरह की आग लगी तन-मन में,
आओ बुझाओ सांवरिया !
बीती जाए उमरिया !!३!!*"
hmmm....nice one!!!
will be waiting for more such romantic songs karan ji...[:p]
sweet wishes...!!!
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